शामली: लोनी में तैनात फूड इंस्पेक्टर आशुतोष सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद बीजेपी विधायक नंद किशोर के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि प्रदेश सरकार में जनप्रतिनिधियों और पार्टी कार्यकर्ताओं से ज्यादा अधिकारियों की सुनवाई हो रही है। कुछ ऐसा ही बेबसी का सामना शामली में बीजेपी कार्यकर्ता भी कर रहे हैं। यहां पर तैनात एआरटीओ की कार्यप्रणाली के चलते जनता की बात रखने वाले लोगों को मुंह की खानी पड़ रही है।
बीते बुधवार को लोनी में तैनात फूड इंस्पेक्टर आशुतोष सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें आरोप है कि विधायक नंद किशोर ने कार्यालय बुलाकर मीट के होटलों के लाइसेंस न बनाने का दबाव डाला था। गाजियाबाद के एसपी नीरज जादौन की संस्तुति पर विधायक व उनके साथियों पर आईपीसी की धारा 147, 148, 323, 504, 506 और 332 के तहत मामला दर्ज किया गया है। जनप्रतिनिधि के खिलाफ हुई इस कार्रवाई के खिलाफ बीजेपी विधायकों ने धरना दिया था, जिसके चलते प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था। कुछ इसी तरह के हालात फिलहाल शामली जिले में पनपते नजर आ रहे हैं। यहां पर एआरटीओ मुंशीलाल की कार्यप्रणाली जनता की आवाज उठाने वालों को बेबसी का दर्द देती नजर आ रही है। एआरटीओ साहब की मनमानी जनता पर भारी पड़ रही है, जिसकी आवाज उठाने पर वें बीजेपी कार्यकर्ताओं तक की सुनवाई नही कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी कार्यकर्ताओं में भी आक्रोश बढ़ रहा है।
नजर नही आ रही ओवरलोडिंग, जनता को कर रहे परेशान
एआरटीओ साहब को जिले में अवैध धंधों में इस्तेमाल हो रहे वाहन, मानकों के विपरीत चल रहे स्कूल वाहन, ओवरलोड ट्रक, वैधता की अवधी खत्म होने के बावजूद भी सड़कों पर दौड रही गाडियों, जुगाड दुपहिया—चौपहिया वाहनों की कोई फिक्र नही है, लेकिन मेहनत—मजदूरी करने वाले लोगों पर उनकी और विभागीय कर्मचारियों की नजरें 24 घंटे गड़ी रहती हैं। छोटे—छोटे वाहनों के जरिए घर खर्च चलाने वाले गरीब मजदूरों पर साहब द्वारा इन दिनों 30—30 हजार के जुर्माने ठोके जा रहे हैं। उनकी यह कार्रवाई जनता में सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा करने वाली है। बीजेपी कार्यकर्ताओं का दर्द है कि साहब गरीब लोगों की आवाज उठाने पर कोई सुनवाई भी नही करते हैं। ऐसे में गरीब लोग और सरकार को मजबूत करने वाले कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
हम तो भाई ऐसे हैं...ऐसे रहेंगे..
जनता से जुडे लोगों का दर्द है कि जब वें शिकायत लेकर एआरटीओ साहब के कार्यालय में पहुंचते हैं, तो उनसे ज्यादा दलालों की सुनवाई होती है। एआरटीओ आॅफिस और उसके बाहर पड़ी दलालों की पलटन का नजारा देखकर एआरटीओ मुंशी लाल की कार्रप्रणाली को आसानी से परखा जा सकता है, लेकिन बड़े अधिकारी भी इस ओर कोई सख्ती नही दिखा रहे हैं।
राजघराने की करते हैं बातें...
साहब से मुलाकात करने पर वें खुद का परिचय देने से पहले अपने परिवार में बड़े सरकारी औहदों पर बैठे लोगों का परिचय सामने वाले को देते हैं। जनता की सुनवाई के दौरान ऐसा प्रतीत होता है कि लोग किसी राजा के सामने आ गए हैं। अजी जनाब राजाओं का तो राज काफी समय पहले ही खत्म हो चुका है, लेकिन प्रदेश सरकार में ऐसे ही अधिकारियों की वजह से जनता को प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ता है।
रोजगार नही, तो मजदूरी भी ना करें?
जिले में अक्सर ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं कि एआरटीओ विभाग द्वारा वाहन चालकों पर 30 हजार से अधिक का जुर्माना लगा दिया जाता है। कार्यालय में पहुंचने पर सुनवाई नही होने के चलते लोग इस भारी जुर्माने को ही चुकाने के लिए मजबूर हैं, लेकिन इतना भारी जुर्माना यदि किसी किसान और मजदूर पर लगे, तो उसकी पीडा असहनीय हो जाता है। नियम—कायदों में मानवता भी जुड़ी होती है, जो सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा करने के उद्देश्य से एआरटीओ विभाग की कार्रवाई में खत्म होती नजर आ रही है।