अब असर दिखाएगा सर्दी का 40 दिन का चिल्ला...


शामलीः चालीस दिन के चिल्ला जाड़े 14 दिसंबर से चालू होंगे, किंतु इसका आगाज एक दिन पहले से ही हो गया है। शुक्रवार को मूसलाधार बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से तापमान लुढ़कता नजर आया। 
  चिल्ला जाड़े यानी कड़कड़ाती ठंड को कहा जाता है। चिल्ला जाड़े 40 दिन के माने जाते हैं। इसके बाद सर्दी अलविदा कहने लगती है। चिल्ला जाड़े अमूमन 14 दिसंबर से 29 जनवरी तक पड़ते हैं। इस दौरान तापमान में गिरावट का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है, लेकिन शुक्रवार को चिल्ला जाड़े शुरू होने से एक दिन पहले ही बारिश और ओलावृष्टि ठंड के प्रचण्ड रूप को बढ़ाती नजर आई। दिन के साथ-साथ रात के समय भी तापमान में तेजी के साथ गिरावट दर्ज की गई।


किसानों पर दोहरी मार 
किसान पहले गन्ने की पर्चियां न मिलने के कारण गेहूं की बुवाई नहीं कर सका और अब मौसम ने अड़चन पैदा कर रहा है। 15 दिन पहले हुई बारिश के बाद अब खेत से नमी दूर हुई थी, लेकिन फिर से बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस बारिश से खेत में नमी दूर होने में कम से कम 15 दिन का वक्त तो लगेगा ही और ऐसे में गेहूं बुवाई का समय निकल जाएगा।


बारिश ने गिराया तापमान, जनजीवन बेहाल 
पिछले कई दिनों से ठंड का प्रकोप बना हुआ था लेकिन गुरुवार को पूरे दिन मौसम के खराब रहने व देर शाम अचानक बारिश शुरू हो जाने से तापमान में गिरावट आ जाने से ठंड का प्रकोप बढ गया। दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें बंद कर घरों को लौट गए। पूरी रात बारिश व बिजली की गडगडाहट का सिलसिला जारी रहा। शुक्रवार की सुबह भी मौसम के खराब रहने व दोपहर बाद तेज बारिश होने से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया। कडाके की ठंड के चलते लोग घरों में ही दुबके रहे। बारिश के कारण शहर में कई स्थानों पर फिसलन पैदा हो जाने से दुपहिया वाहन चालकों को दिक्कतों का सामना करना पडा वही बाजारों भी चहल-पहल न होने से सन्नाटा सा पसरा रहा। ग्राहकों के न आने के कारण दुकानदार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। कई स्थानों पर लोगों को अलाव जलाकर हाथ तापते भी देखा गया, ठंड से बचने के लिए लोग गर्म कपडों का सहारा ले रहे हैं। शुक्रवार को पूरे दिन बारिश का सिलसिला जारी रहा। वहीं बारिश व ठंड के कारण स्कूल, कालेजों में भी छात्र-छात्राओं की उपस्थिति भी बेहद कम रही। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को छुट्टी होने से पहले घर ले आए। बाजारों से रौनक गायब रही।