भाजपा के संगठनात्मक चुनाव को लेकर खड़े हो रहे कई बड़े सवाल!


शामलीः यूपी में बीजेपी के संगठनात्मक चुनावों का बिगुल बज रहा है। नगर मंडल अध्यक्ष तक की चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब जिलाध्यक्ष पद के लिए नामांकन मांगे जा रहे हैं, लेकिन अभी तक की चुनावी प्रक्रिया को लेकर पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में अजीब सी सुगबुगाहट सुनने को मिल रही है। दरअसल पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं इस वजह से परेशान हैं कि पार्टी द्वारा विभिन्न पदों के लिए नामांकन की प्रक्रिया तो कराई जा रही है, लेकिन चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी का नाम आलाकमान द्वारा ही घोषित किया जा रहा है। इस चुनाव में न तो वोट मांगी जा रही है और न ही नामांकन में शामिल होने वाले अन्य प्रत्याशियों को उनकी हार का कोई विशेष कारण बताया जा रहा है। बात आलाकमान से जुड़ी हुई है, इसके चलते कोई भी मुंह खोलने के लिए तैयार नही है। दबी जुबान में चलने वाली सुगबुगाहट इस बात की ओर इशारा कर रही है कि यदि पार्टी आलाकमान द्वारा विजयी प्रत्याशी का नाम स्वयं ही घोषित करना है, तो आखिरकार नामांकन की प्रक्रिया क्यों कराई जा रही है। 


कौन बनेगा बीजेपी का जिलाध्यक्ष 
शामली जिले में बीजेपी जिलाध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पार्टी आलाकमान की कवायद तेज हो गई है। पार्टी द्वारा उम्मीदवारों से नामांकन पत्र मंगाए गए हैं। ऐसे में पार्टी के कुछ खेमें कई धड़ों में भी बटते हुए नजर आ रहे हैं। जिलाध्यक्ष का पद कब्जाने के लिए खींचतान भी शुरू हो गई है, जो सोशल मीडिया के माध्यम से दिनों-दिन रोचक होती जा रही है। लोगों में चर्चा है कि पार्टी जिलाध्यक्ष पद के लिए ऐसा बहुचर्चित चेहरा ढूढ़ रही है, जो जिले में पार्टी की आकांक्षाओं पर खरा उतरे। 


बीजेपी के चुनाव में फल-फूल रहा जातिवाद 
बीजेपी की विचारधारा जातिवाद नही बल्कि राष्ट्रवाद से जुड़ी हुई है। कई बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने भाषणों में इसका जिक्र करते हैं, लेकिन इन दिनों बीजेपी के संगठनात्मक चुनाव में जातिवाद पूरी तरह से हावी हो रहा है। लोग अपनी-अपनी जातियों का बीजेपी को मजबूती स्थिति में लाने में विशिष्ट योगदान बताते हुए   जिलाध्यक्ष पद जातिगत आधार पर मिलने की मांग कर रहे हैं। इस संबंध में सोशल मीडिया पर भी जारी खींचतान काफी हद तक आगे पहुंच गई है। यह भी पता चला है कि कुछ उम्मीदवार अपने जातिगत समर्थन के लिए औरों से सोशल मीडिया पर प्रचार करा रहे हैं, जबकि कुछ लोगों ने बैठकें आयोजित इस संबंध में अपनी नीयत साफ कर दी है। अब सवाल यह है कि पार्टी के संगठनात्मक चुनावों में कूट-कूट कर भर चुका यह जातिवाद बीजेपी के लिए कितना घातक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि भले ही बीजेपी के इस चुनाव में वोटर ना हों, लेकिन  पदाधिकारियों की जातिगत फूट चुनाव के बाद मतभेद पैदा कर सकती है।