विशेष रिपोर्ट: महापर्व पर बाजार में मंदी का फाका

  • बाजारों में भीड़-भाड़, लेकिन नही दिख रहे खरीददार 


''इन दिनों पूरा देश आर्थिक मंदी की चपेट में हैं। ऐसे में त्यौहारों की चमक भी फीकी पड़ने लगी है। देश का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली सिर पर है, लेकिन इसके बावजूद भी बाजारों में सन्नाटा छाया हुआ है। व्यापारी परेशान है, क्योंकि लोगों के हाथों में पैसा ही नजर नही आ रहा है। बाजारों में भीड़-भाड़ तो दिखाई देती है, लेकिन खरीददार ढूंढे भी नही मिल रहे हैं, ऐसे में नौकरों की तनख्वाह निकालने में भी परेशानियां हो रही हैं।''



शामली: देश में छाई आर्थिक मंदी के मौजूदा हालात से व्यापारी परेशान हैं।  जीएसटी इनकम टैक्स टीडीएस के चक्कर में व्यापारी उलझा हुआ है। रोजगार के अवसर घट जाने से लोगों के पास पैसा नहीं है। बाजार में ग्राहक भी कम हैं। मशीनीकरण के कारण रोजगार के अवसर भी घट रहे हैं। ऐसे हालातों में रही-सही कसर आॅनलाइन साइटें पूरी कर रही हैं। लोगों  को रोजगार मिले तथा हर हाथ में पैसा हो तो बाजार में खरीदारी बढ़ेगी मंदी नहीं होगी। ऐसे हालातों में सरकार को जनता पर कर और महंगाई लादने के बजाय रोजगार सृजन की जरूरत है, नही तो हालात ओर भी अधिक बिगड़ सकते हैं।  कुछ दिनों बाद दीपावली आने वाली है, लेकिन बाजारों में मातम सा छाया नजर आ रहा है। मंदी की मार से पूरा देश जूझ रहा है, वहीं बाजारों में व्यापारी भी अपने नौकरों की तनख्वाह भी बामुश्किल निकाल पा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि मानों इस बार सभी की दीपावली फीकी ही रह जाएगी। 



ई-काॅमर्स कंपनियों का मंदी में बड़ा योगदान 
व्यापारियों का दर्द है कि मंदी से उनके व्यापार ठप्प हो रहे हैं। वें इसका सबसे बड़ा कारण ई-काॅमर्स कंपनियों को बता रहे हैं। आॅनलाइन व्यापार की वजह से ग्राहक दुकानों पर नही पहुंच रहे हैं, क्योंकि उन्हें सस्ता माल आॅनलाइन ही मिल जाता है, जबकि व्यापारी जीएसटी में ही उलझे हुए हैं। रेडीमेड और इलेक्ट्रानिक व्यापारी ई-काॅमर्स के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुके हैं। शोरूम में करोड़ों लगाकर फिलहाल वें खाली हाथ बैठे हुए हैं। आॅनलाइन शाॅपिंग की वजह से डगमगाई आर्थिक व्यवस्था के मद्देनजर दो दिन पूर्व केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने अमेजन और फ्लिपकार्ट के साथ बैठक की थी, जिसके बेनतीजा निकलने की जानकारी मिली है। 



सिर्फ राष्ट्रवाद की घुंटी से नही बनेगी बात 
देश में छोटे व्यापार गृह उद्योग संकट में आ चुके हैं। यूपी के हालात तो और भी अधिक बिगड़ते नजर आ रहे हैं। सरकार यहां पर निवेश आने का दावा तो कर रही है, लेकिन पहले से चल रहे व्यापार और उद्योग धंधों को बचाने में भी मशक्कत करनी पड़ रही है। आर्थिक मंदी से जूझ रहे देश को उबारने के लिए सरकार को गंभीर होकर सोचना पड़ेगा। केवल राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाकर कब तक संतुष्ट किया जाएगा।



क्या है भारत में आर्थिक मंदी का कारण 
मंदी से भारत भी अछूता नहीं है। भारत में इसके प्रमुख कारणों में से एक है सामानों का निर्यात अपेक्षाकृत कम होना। सरकार द्वारा ब्याज की दरें घटाने के साथ कई बड़ी कंपनियों को जरूरत से ज्यादा लोन देना भी इसका एक कारण माना जा रहा है। आटोमोबाइल कंपनियों और लघु व्यापारियों पर इस आर्थिक मंदी का असर सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। मंदी के दुष्प्रभाव से मंहगाई के साथ गरीबी भी निश्चित तौर पर बढ़ जाती है, हालांकि इसके लिए सीधे केवल सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जनता भी कहीं न कहीं दोषी है। हमारे यहां अधिकतर लोग टैक्स की चोरी करते हैं। कुछ होने पर विरोध स्वरूप बाजार व दुकानों को बंद करा देते हैं जबकि अन्य देशों में सरकार के नीतियों का विरोध वहां की जनता उत्पादन को दोगुना बढ़ा कर विरोध प्रकट करती हैं। इसके लिए चाहे व छोटे ही दुकानदार क्यों ना हो देश की अर्थ व्यवस्था में उन सभी को जागरूक होना पड़ेगा।



दर्पण से क्या बोली जनता...?
भाजपा नेता तरूण अग्रवाल की माने तो वेस्ट यूपी में मंदी का मुख्य कारण आॅनलाइन खरीदारी है। किसान के हाथों में पैसा नही है, महंगाई भी बढ़ रही है। ऐसे में सबसे बड़ी चोट बाजार को पहुंच रही है। व्यापारी दीपक बंसल ने बताया कि सबसे पहले व्यापारी के परिवार को आॅनलाइन सामान नही खरीदने की कसम खानी होगी। हमें खुद सुधरना होगा, नही तो हमारा व्यापार और परिवार मुश्किलों में आ जाएंगे। व्यापार को बचाने के लिए सभी को कुछ ना कुछ तो करना ही होगा। एडवोकेट विराट सिंह जटराना भी आॅनलाइन खरीददारी को ही मंदी का  मुख्य कारण बता रहे हैं। लोकदल नेता मनोज चौधरी का कहना है कि बाजार की मंदी को सरकार की नीतियां ही सहारा दे सकती है। जनता के करने से कुछ नही होगा।